तुम्हीं तुम हो…….!
जमीं और आसमानों में, चंद्र और सितारों में,
बसंत की बहारों में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
संगीत के सुरों में, नर्तकी के नृत्य में,
गायक की गान में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
काबा और कैलाश में, गिरजा और गुरुद्धारा में,
मंदिर के देवालय में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
खेत और खलिहानों में, फुलों और कलियों में,
प्रीत की गलियों में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
सुर्य की किरणों में, अंधेरों और उजालों में,
दीप की बाती में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
जीवन की सांस में, मन में उमड़ते भाव में,
सृष्टि के कण कण में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
सागर और नदियों में, झरनों की कलकल में,
पक्षियों की कलरव में, हर जगह तुम्ही तुम हो।
सन्यासियों की बातों में, मजदुरों की हाथों में,
मेरे मालिक मेरे मौला, हर जगह तुम्ही तुम हो।
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