तुम्हारे हाथ की अब भी छुअन…
तुम्हारे हाथ की अब भी छुअन लिपटी है गालों में
उड़ाता हूँ तुम्हारी याद होली के गुलालों में
जवाबों की मैं जब फ़ेहरिस्त कोई ढूंढ़ लाता हूँ
उलझ जाती है जालिम जिंदगी फिर से सवालों में
इमारत है कई मालों की तेरे शहर में लेकिन
ये चैन-ओ-अम़्न बेघर हो गए हैं चंद सालों में
खुदा से राम का झगड़ा करा बैठे सियासतदाँ
फँसा है मुल्क मन्दिर और मस्जिद के दलालों में
मिलन का है यकीं पूरा उन्हें अब क्या कहें साहिब
चमेली का लगाकर तेल वो निकले हैं बालों में