तुम्हारे संग
“तो क्या चलोगी तुम मेरे संग”?
तुमने पूछा मुझसे,
कुछ इतने करीब से
कि लजा गयी थी मै!
तुम कल्पनाओं में जीते हो,
स्वप्न लोक में विचरते हो,
प्रेम – प्यार में गोते खाते,
रंगीन से अनुराग जताते।
धीमे से हर राग, भाव चेहरे पर थिरकते हैं,
आवेग, जोश मचलते है,
थोड़ी सी लालसा
और कुछ अभिलाषा ।
उन्मुक्तता,
मादकता,
प्रेम वासना,
अनंत तृष्णा ।
तुम और हम स्वप्न द्रष्टा हैं,
हम सपनें सजाते हैं,
जग हमारा कपोल कल्पित,
प्राकृतवादी, प्रेमप्रासंगिक।
हम कवि हैं,
लेखक हैं
एक प्रेम कथा कल्पित के,
अनूठे एक प्रेम गीत के।
गुलाबी सी चादर डारे,
मन में असंख्य तरंगे उतारे,
कुछ तामसी,
कुछ उत्साही।
चल पड़ी मै तुम्हारे साथ,
एक दूसरे का थामे हाथ,
तुम और हम,
आकाशीय, वायव्य नर्तक।
जलतरंग सी लय मे रत,
मधुर पर हृदय गति सी द्रुत,
उन्मत्त, उन्मादपूर्ण,
उल्लासमय, हर्ष से परिपूर्ण ।
तुम और हम प्रेम में विलीन,
प्रेम से परिपूर्ण,
स्वतंत्र, असीम, अपरिमित,
सदैव प्रेममय, एकीकृत,
रंग बिरंगी भावनायें, सार्वकालिक,
दो अनंत प्रेमी चिरकालिक ।।
©मधुमिता