तुम्हारे लिए
रात पीयूष वर्षा हुई देर तक।
चाँद पूनम का ठहरा रहा देर तक।
तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए।
कन्दरा का अँधेरा क्यों रास आ गया?
और अँधा सबेरा क्यों रास आ गया?
उध्र्व उठते हुए श्वास शाश्वत नहीं‚
साधना‚जोग‚तप कोई शाश्वत नहीं।
रस बरसा किया नभ के हर छोर से।
इतनी मधुमय विभा नभ के हर छोर से।
तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए।
राधिका रास रचती रही रात भर।
पी–पी पपीहा पुकारा किया रात भर।
तुम भभूती लगाते–लगाते रहे।
जोग यूँ तुम जगाते–जगाते रहे।
हर सरोवर को चूमा किया चन्द्रमा।
पत्ते–पत्ते में ढ़ूँढ़ा किया चन्द्रमा।
तुम्हारे लिए बस तुम्हारे लिए।
ये क्षितिज ने क्षितिज से है पूछा किया।
तुमने देखा पिया? तुमने देखा पिया?
सारे तारे विचरते रहे ढ़ूँढ़ते।
नील नभ‚नील सागर सभी खोजते।
झूठ को सच बनाते–बनाते रहे।
तुम तो धूनी रमाते–रमाते रहे।
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