तुम्हारे बिन कयामत
एक नई गजल
हमारी जाँ पे आफत हो रही है,
तुम्हारे बिन क़यामत हो रही है।।
तुम्हारी ख़ामुशी से आज देखो,
मुहब्बत की जलालत हो रही है।।
हुई बेहाल साँसे जिंदगी की,
सुकूँ से भी बगावत हो रही है।।
नही है हुस्न पे इलजाम कोई,
फ़क़त आशिक़ की जिल्लत हो रही है।।
वफ़ा ईमान की कीमत नही है,
मुहब्बत अब तिज़ारत हो रही है।।