‘तुम्हारे बिना’
तुम्हारे बिना
अभावों की रसोईं में
उबलती रही
ख्वाबों की चाय..
देर तलक!
प्रतीक्षा करते रहे
मूक कप..असहाय
गाढ़ा होता रहा
इच्छाओं का रंग
ढूॅंढता रहा..
अपनों का संग
उड़ती रही..
कल्पनाओं की सुगंध!
बिखरते रहे
ऑंखों के समक्ष
असंख्य भाव-अनुबंध
चाय बनती रही
अप्राप्य प्रेम की स्मृति
पलकों से गिरती रही
स्वरचित
रश्मि लहर