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25 Jan 2019 · 1 min read

तुम्हारे बिना

अगर आए कयामत तो तेरे पहलू में दम निकले
बड़े बेताब लेकर ख्वाब ये नज़रों में हम निकले ।

तिरा ही ख्वाब रातों में हैं दिन में भी तिरे जलवे
खुदाया बेवफा तुम सा न कोई भी सनम निकले।

गिरह खुल जाएं तो छंट जाएंगे बादल अंधेरों के
मिरे इस दिल से तेरी आशिकी का तो भरम निकले।

हुआ असर ही कुछ ऐसा अजी अंजामे उल्फत का
खबर न खुद अब अपने ही खात्मे पर फिर कदम निकले।

चले थे पोंछने आँसू कभी हम आँखों से उनकी
जब आया होश तो हम खुद ही दर्दों के हमदम निकले।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©

231 Views
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