तुम्हारे बाहुपाश के लिए …….
तुम्हारे बाहुपाश के लिए …….
कितने वज्र हृदय हो तुम
इक बार भी तुमने मुड़कर नहीं देखा
तुम्हारी एक कंकरी ने शांत झील में
वेदना की कितनी लहरें बना दी
और तुम इसे एक खेल समझ
होठों पर हल्की सी मुस्कान के साथ
मेरे हाथों को अपने हाथों से थपथपाते हुए
फिर आने का आश्वासन देकर
मुझे किसी गहरी खाई सा तनहा छोड़कर
कोहरे में स्वप्न से खो गए
और मैं तुम्हें जाते हुए
यूँ निहारती रही
मानो रूह जिस्म से दगा कर गयी
किसी आशंका के चलते
मैं पतझड़ में
वृक्ष से गिरे टूटे पीले पत्ते की मानिंद
हवाओं के रहमो करम पर
टुकड़े टुकड़े बिखरने को रह गयी
उस झील को
इक बार तो मुड़कर देखते
उसके सीने पर
बेरहम वार से आहत
दर्द कितनी देर तक
लहरों में तैरता रहा
और उसमे
झिलमल करता तुम्हारा शशांक
लहरों के साथ दर्दीली छवि लिए
तुम्हारे बाहुपाश के लिए मचलता रहा, मचलता रहा …………….
@सुशील सरना