तुम्हारे पापा ने
जब ब्याह कर के आई,घर तुम्हारे
बेटी सा प्यार दिए तुम्हारे पापा ने।
लोगों के नज़र में तो बहू बन के आई,घर तुम्हारे
मगर बेटी का सम्मान दिए तुम्हारे पापा ने।
एक दुनिया के सफर खत्म हुई,आके घर तुम्हारे
तो दूसरी दुनिया के खुशियों से नवाजा तुम्हारे पापा ने।
वहीं ध्यान, वहीं चिंता उतना ही प्यार देखा सब के आंखों में
ऐसा घर-परिवार दिए तुम्हारे पापा ने।
जो चाहा,जो मांगा जिसपे रखीं उंगली मैंने
एक पिता बनके मेरी जींद पूरा किए तुम्हारे पापा ने।
रिश्ते में तों थे हम ,ससुर-बहू
मगर पिता कहने का अधिकार दिये तुम्हारे पापा ने
डरतीं थीं मिलने से पहले तुम्हारे
मगर हर रिश्तों में उत्तम ,हर लोगों से अच्छा पति दिये तुम्हारे पापा ने।
एक नहीं कई रिश्तो से जुड़े हैं आके घर तुम्हारे
कभी भूलेंगे नहीं ,ख़ुद का बेटा दिए तुम्हारे पापा ने।
नितु साह
हुसेना बंगरा, सीवान-बिहार