तुम्हारे नाम
कविता
तुम्हारे नाम
*अनिल शूर आज़ाद
मेरा एकाकीपन
मुझे कचोटता नही है
चांद भी तो अकेला है
(इतने तारे साथ हैं
गलत तर्क है यह !)
दरअसल
लाखों की/भीड़ के बीच भी
कोई एक शख़्स
एक ही/होता है
हां..यह अहसास
कचोटता है/कि
तम्हारे लिए मैं/उपयोगी नही
इसी अहसास को
पोंछने के लिए ही
कुछ ये..कविताएं
तुम्हारे नाम/की हैं
(कविताएं ही मेरा सर्वस्व हैं )
शायद तुम्हें/कुछ
शीतलता दे सकें!
(रचनाकाल : वर्ष 1986)