तुम्हारे जैसा प्रेम
नहीं मैं तुम सरीखा प्रेम नहीं जानती हूं
जो चीज तुम्हें सताती है उसे मन में रख पालना जानती हूं
हजारों से घिरे तुम जब एक से भी मुस्काते हो
साथ रहकर मेरे हमसे यूं बेरुखी दिखलाते हो
तब मन में रो कर ऊपर से हंसना जानती हूं
हां मैं तुम सरीखा प्रेम नहीं जानती हूं जीवन की हर मंजिल तुम्हें मान
सारे रास्तों का रुख तुम तक मोड़ा है
सब रिश्ते बंधन तोड़ बस मैंने
तुम संग जीवन का नाता जोड़ा है
ख्वाबों में ही जीती हूं क्योंकि उसमें ही साथ तुम्हारा है
ख्याल ,बात बहुत छोटी है
हमने तुम्हें आत्मा में उतारा है
सपने में भी किसी और संग तुमको देख
मैं सिहरना जानती हूं
मैं कहां तुम सरीखा प्रेम जानती हूं
बिखरे तो हम हमेशा से रहे
जो भी मिला जीवन में उसे सहते रहे
मान मर्यादा में खुद को सहेजते रहे
तुम पास हो तो तुम्हारी बाहों में सिमटना जानती हूं
बस तुम सरीखा प्रेम नहीं जानती हूं
पता नहीं कौन सी परिभाषा गढ़ रखी तुमने प्रेम की
बस भरोसा करती हूं और तुमसे दूर रहना नहीं आता
बिन तुम्हारे ख्यालों के जीना नहीं आता
किस तरह दिन गुजरता है जब तक तुम मुझे जान नहीं कहते
निगाहें उठाकर नहीं देखते तो हम खुद पर अभिमान नहीं करते
बस तुम बिन जीना तो दूर हमें मरना भी नहीं आता
क्या सच में मुझे प्रेम करना नहीं आता?