तुम्हारे जुल्म की हमपर कोई हद नही है
तुम्हारे आंकड़ों मे हमारी
कहीं गिनती नही है
तुम्हारे वास्ते हम इंसान नही हैं
तुम्हारी वास्ते हमारा कोई मान नही है
तुम्हारी नजरों मे हमारा कोई कद नही है
तुम्हारे जुल्म की हम पर कोई सीमा नही है
तुम्हारे जुल्म की हम पर कोई हद नही है
जब चाहा ठूस दिया जेलों मे
जब चाहा रिहाई देदी
जब चाहा रौंद दिया,जब चाहा रूसवाई देदी
तुमने गद्दार लिखा तो गद्दार कहलाये हम
तुमने वफादार लिखा तो वफादार कहलाये हम
क्योंकि तुम हाकिम ऐ शहर हो
तुमने जो लिख दिया माथे पर,उसका कोई रद्द नही है
तुम्हारे जुल्म की हम पर कोई सीमा नही है
तुम्हारे जुल्म की हमपर कोई हद नही है
मारूफ आलम