तुम्हारे गांव के पक्षी
तुम्हारे गांव के पक्षी
सुनो सखी!!!!!
कैसी हो???
मन विचलित है
तन कुम्हलाया !!!!
तनिक उम्मीद जगी
जो तेरा खत आया!!!
मेरे शहर की दीवारें ऊंची
नीचे पड़ गए हैं मानव
धूल धूएं के गुब्बार
नहीं शीतल बयार!!!
सड़कों पर उतरे हैं लोग
लिए अनगिनत असाध्य रोग
अपरिचित!!!! अपरिमित!!!! असंख्य
एक लगन बस भीषण भोग!!!!!
याद है तेरे गांव की ताजा
सखी लिवाने मुझको आजा!!!!
देखूं फिर-फिर वही नजारे
फूल वादियां कल कल धोरे!!!
अपनेपन का कलरव पल-पल
तेरे गांव के पक्षी करते !!!!!
गीतों की महफ़िल में कितने
राग- रागिनी मन दुख हरते!!!
हर घर अपना
हर मन अपना
दादी-नानी सब गांवों में
शहर में दिखता कोरा सपना!!!!
मेरे मन आंगन के कोने
खेल खेलते खग मृग छौने
आज पपीहा कोयल गाए
नयना नीर उमड़ा गम धोने!!!!
विमला महरिया “मौज”