तुम्हारे ओंठ हिलते हैं
विधाता छंद
हॅसीं तुम हो जवाॅ तुम हो अदा हर कातिलाना है।
टिका लो तुम नजर जिस पर वही बंदा दिवाना है।।(१)
तुम्हारे ओंठ हिलते हैं जुबाॅ से फूल झरते हैं,
तुम्हारी शोख नजरों में समाया ये जमाना है।।(२)
किये घायल बहुत से हैं अटल भी बच नहीं पाया,
हुआ है जख्म इक दिल में दिखाकर क्यों दुखाना है।(३)
किये हैं कत्ल ना जाने निगाहों से कई अब तक,
सभी चाहें हैं कुर्बानी कहें क्यों ये गॅवाना है।(४)
छुपाते फिर रहे मजनूॅ जख्म अपने दिलों का अब,
अटल कहता है’ खुलकर ये मगर सबका फसाना है।(५)