तुम्हारे अर्धशतक पर
सुनो,
तुम्हारी इस अर्ध शतकीय
पारी में
मेेरे साथ की साझेदारी के
जो
सत्ताईस साल हैं न
उसके कुछ पन्ने
आज
हौले से दस्तक
दे बैठे हैं!!
तुम्हारे साहसिक कहानियों के पढने के शौक से प्रभावित मैं
और मेरे गुस्से की टोह लेकर व निरीह पाकर
आस्वस्त तुम,
सब इन्हीं पन्नों
के बीच छलक आया है,
ये दीगर बात है कि
वो साहसिक कहानियाँ,
मिल्स n बून की निकलीं!!
पहले रुआब के लिए
डाला गया
ये एक
सियासी बयान था।
पर इन छुटपुट निश्छल झूठों
के पीछे,
एक मजबूत और अडिग,
अनकहा सा वो “कुछ” भी था,
Nicco पार्क की उन शामों
के बीच खाली होते
अनगिनत वो
स्लश के ग्लास,
काँच की मशीन में
घूमते-फिरते पॉपकॉर्न से
तुम्हारी दीवानगी,
अब भी ठीक वैसी ही तो है,
किराए का वो
पहला “अपना” सा घर,
जिंदगी का शुरुआती सफ़र
नन्हें कदमों की गूँज
खुशियोँ व परेशानियों,
पर
दोनों का एक सा स्वर।
वो यदाकदा की खिचखिच
रूठना-मनाना
फिर रुठ जाना,
रुठ कर मुस्कुराना
और मुस्कुरा के रूठ जाना
इन सब गलियारों से गुजरते
शनै शनै ढलते हम
अब जब थोड़े ठहरे से है
इस अतीत को सहेजे,
दृष्टि पटल पर
इन लम्हों की
आती जाती
आहट के बीच,
दूर से गूंजती
एक शर्मीली सी
लड़की की
एक उन्मुक्त
खिलखिलाहट
अपने चुलबुलेपन
के साथ होठों पर ठिठकी
खड़ी है, संख्या और
समय
की परिधि
से कहीं दूर!!!
ये अन्तराल बिल्कुल
बेतुका व बेमानी
सा लगता
है
सुनो,
तुमको पचास की होने में
अब भी काफी वक्त लगेगा।
और मुझे भी कोई जल्दी नहीं है!!!