तुम्हारें सिवा अब ये नजरें।
तुम्हारें सिवा अब ये नजरें कहीं उठेगीं नहीं।
गर उठ भी गयीं तो कभी वहाँ टिकेंगीं नहीं।।1।।
इश्क में हम रूह से तेरी रूह में उतर जाएंगें।
मुश्किल है बिन तेरे धडकनें अब चलेंगीं नहीं।।2।।
कब से बचा के रखा है इक तेरे लिए हमनें दिल।
ले लो इसको कि अब आरजूऐंऔर दबेंगी नहीं।।3।।
जी ले तू जी भरकर अपनी ये नई ज़िन्दगी।
यह महफिले कल को अपने घर में सजेंगी नहीं।।4।।
औरत चाहना औरत को चाहना है एक नहीं।
अल्फाज़ो की सरकशी हैं समझ मे घुसेंगी नहीं।।5।।
मैं चाहतें तो सारी की सारी लुटा दु इक तुझ पर।
पर गर्दिशों में तेरी चाहतें मुझकों मिलेंगी नहीं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ