तुम्हारी हँसी……!
तुम्हारी हँसी……!
चिड़ीयों की चहचहाट सी
कोयल की कूक सी
बांसुरी की धुन सी
निर्लिप्त तुम्हारी हँसी।
झरनों की कलकल सी
बसंत की बहार सी
वीणा की तान सी
मधुमय तुम्हारी हँसी।
गायक की गान सी
ठंडे मंद पवन सी
अधखिली धूप सी
चंचल तुम्हारी हँसी।
गंगा की लहर सी
प्राची की किरण सी
पुर्णिमा की चांद सी
निश्छल तुम्हारी हँसी।
मंदिर की दीप सी
खिले हुए फूल सी
योगियों के योग सी
पवित्र तुम्हारी हँसी।
जीवन की प्रभात सी
आन्नद की सिहरन सी
आकाश की इंद्रधनुष सी
मनभावन तुम्हारी हँसी।
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