123. तुम्हारी सोच बदलनी चाहिए
अच्छाई से मुँह मोड़ रहे हैं,
बुराई से दिल लगाने में ।
लत ये लगती जा रही,
अब सबको इस जमाने में ।।
बाप की हस्ती नहीं अब,
बेटों से नजर मिलाने की ।
पड़ गई आदत उसे,
अपनों से कम दिखाने की ।।
शर्त थी कि तुझे,
एक अच्छा इंंसान बनाऊँगा ।
खुद से ज्यादा तुम्हें,
ऊँचा मुकाम दिलाऊँँगा ।।
एक हठी मुर्ख पागल इंसान को,
सुधारने का, बीड़ा क्या लिया मैंने ।
मालूम नहीं था हमें,
मैं खुद पागल हो जाऊँगा ।।
जान है अब भी मुझमें,
चाहूँ तो ये तस्वीर बदल दूँ ।
पर हमारी कोशिश है कि,
तुम्हारी सोच बदलनी चाहिए ।।
नफरत की आँखों से तेरी,
वो प्यार की गंगा निकलेगी ।
विश्वास है मुझे खुद पे,
एकदिन ये तस्वीर बदलेगी ।।
कर दिखाओ तुम कुछ ऐसा कि,
हर सड़क पर, हर गली में,
हर शहर, हर गाँव में ।
चर्चे तेरे नाम के,
हर जुबाँ पर होनी चाहिए ।।
मेरे सीने में हो,
या तेरे सीने में हो ।
हो कहीं भी आग जो नफरत की,
वो आग बुझनी चाहिए ।।
नफरत की आँखों से,
गंगा निकलनी चाहिए ।
हमारी कोशिश है कि एकदिन,
तुम्हारी सोच बदलनी चाहिए ।।
और इस जमाने की,
ये तस्वीर बदलनी चाहिए ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 12/10/2021
समय – 12 : 53 ( रात्रि )