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30 Jul 2024 · 1 min read

तुम्हारी शरारतें

एक डिब्बे में सम्भाल कर रखी हैं तुम्हारी शरारतें
ज़िंदगी एक हिस्से में बसा रखी हैं तुम्हारी शरारतें

कभी रात सिरहाने लगा सो जाता हूँ
कभी बिछा लेता हूँ तुम्हारी शरारतें

जब कोई नहीं होता तो तन्हाई होती है
तब बहुत याद आती है तुम्हारी शरारतें

नर्म हल्का सा कंबल हैं ओढ़ने के लिए
कभी शूल सी चुभन हैं तुम्हारी शरारतें

डा राजीव “सागरी”

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