तुम्हारी याद
कविता
तुम्हारी याद
*अनिल शूर आज़ाद
कॉलेज के/चार वर्षों में
जब भी तुम/पीरियड में नही आई
तुमसे कोई/परिभाषित रिश्ता
नही होने के बावजूद
हर बार/लगा
तुम/ अपने पीछे
एक अज़ीब सूनापन
छोड़ गई हो
(जिसे केवल/तुम्हीं
भर सकती हो!)
कॉलेज की/कक्षा में
मैं/आज भी हूं
स्टूडेंट-बेंच से
लेक्चर-टेबल पर
आ गया हूं
ढ़ेरों चेहरे हैं/ मेरे सामने
पर भीतर.. सिर्फ तुम्हारी
अनगिनत/यादें हैं..बस..
(रचनाकाल : वर्ष 1988)