तुम्हारी याद..!
जब तुम्हारी याद आती है
मैं ढूंढती हूं तुम्हारा कोई निशान
जो तुम्हारी मौजूदगी का अहसास कराए
और महसूस करती हूं तुम्हारा होना
यूं तो याद आना तुम्हारा, रोजगार है मेरा
जिससे जिंदा होने का अहसास बना रहता है
पर कमबख्त याद समेटे रहती है अपने आप में एक कसक
एक टीस,एक तकलीफ
क्यों नही तुमसे सचमुच ही मैं कर सकती बात?
क्यों नहीं घुमा सकती उंगलियों को तुम्हारे नाम पर?
क्यों नही भेज सकती अपने मन की बाते तुम तक,
तुरंत, जब तुम्हारी याद आती है
मालूम होता है मैं उस दौर में जा पहुंची
जब तकनीक नही थी
अहसास होता है क्यों लिखा गया है
प्रेम पर इतना ..
दूर होने पर क्यू पता चलता है,
जो बीत गया वो लम्हा कितना खास था।
अभी तो था ,यही तो था ,वो पल,
जब साथ थे , हम
और अब बस है मन हारा सा ।
पर मैने ढूंढ निकाला तुम्हारा निशान
तुम्हारी लिखी कविताओं में,
बार- बार उनको पढ़ती हूं..
ये सोच कर, की ,तुमने भीं तो पढ़ा होगा इनको,
या अभी कही पढ़ रहे होगे..
तो मिल जाएगा साथ तुम्हारा…
इतना मुश्किल भी नहीं था तुमको ढूंढना।
मन सोचता है,
तुम्हारा निशान है उन मंजिलों तक.
जिस तक दोनो को जाना था
साथ नही चले तो क्या रास्ता तो वही है
जिन पर तुम चलते हो
उन्ही रास्तों पर में भी तो हूं
भूगोल , इतिहास की पुस्तके
जो तुम पलटते हो
मेरे पास भी तो वही है।
संविधान के वही अनुच्छेद
जो तुम याद कर रहे होंगे कही
जब मैं याद करती हूं तो भी,
मैं तुम्हारे साथ ही हो जाती हूं
जो प्रश्नों का अभ्यास तुम करते हो
उन्ही प्रश्नों के अभ्यासों में उलझी हुई
समय के आगे पीछे झूलते आयामों में
आखिर कही तो होते हैं हम एक साथ।
इतना मुश्किल भी नहीं है
तुम्हारा निशान ढूंढना।
तुम्हे ढूंढना।
तुम्हारी बोली बातों को दोहराते हुए
खुद मे तुमको पाती,
तुम्हारी हंसी और तुम्हारा वो गुस्सा
सब मेने कॉपी पेस्ट कर मारा
इतना ही आसान है देखो
तुम तक पहुंच पाना
तुमको पढ़ लेना,
जो एक खुली किताब नही ..
ये बहती हवा ,ये सड़क
तुम्हारे शहर से होकर ही आ रही है।
जिन रास्तों पर तुम चले
उन पर मैं भी तो चलती हूं
बस इसी तरह
मैं तुम्हे प्रेम करती हूं
~priya