तुम याद रही !
सब भूल गए हम,
बस तुम याद रही!
साथ तुम्हारी कही हर बात रही।
वो बीते दिन भी कितने अच्छे थे,
भाव मन में दोनो के सच्चे थे।
छुप छुप कर मिलना होता था,
लोगों से भी डरना होता था।
मेरी पहली मोहब्बत थी तुम,
सजदे में थे हम, इबादत थी तुम ।
तुम्हारे मोहल्ले में बेवजह ही जाना ,
कभी ट्यूशन कभी स्कूल का बहाना।
तुम्हारा मंदिर के बहाने से घर आना,
नजदीक आकर मुझे गले लगाना।
दोस्त हैं हम, ऐसा दोस्तों को बताना,
किस्से अकेले में इक दूसरे को सुनना।
मन ही मन भाव कितने बनाते थे,
कुछ छुपाते थे कुछ बताते थे।
समाज की बंदिशें थीं, मजबूरी थी,
मन में मलाल था, मीलों की दूरी थी।
आखिर बंधन प्रेम का टूट गया,
इन हाथों से हाथ तुम्हारा छूट गया।
जीवन की सरिता बहती चली गई,
समय के थपेड़े भी सहती चली गई ।
अब तो हम दोनो दो वोर हुए,
नदी के किनारों जैसे दो छोर हुए।
हर दुआ में वैसे ही तुम साथ रही,
जैसे जीवन में कोई अधूरी सौगात रही।
सब भूल गए हम, बस तुम याद रही,
साथ तुम्हारी कही हर बात रही ।