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18 Mar 2020 · 1 min read

तुम्हारी यादों के अंजुमन में…

तुम्हारी यादों के अंजुमन में हमारी धड़कन मचल रही है
चले भी आओ कि जान मेरी ये धीरे-धीरे निकल रही है

हमारी बाँहों की कैद से तुम निकल गए जब उसी घड़ी से
बसा के आँखों में चाँदनी को ये रात करवट बदल रही है

निगाहों ने छू लिया था यूँ ही जिसे समझकर हबीब अपना
बड़े ही आहिस्ता आज दिल की गली में आकर टहल रही है

हमारे बाँहों के दरमियाँ वो बसे हैं जब से नसीब बनकर
हया भी आँखों से हो के गाफिल मोहब्बतों में फिसल रही है

गिरा गए वो इधर बिजलियाँ मगर न खुद भी बचे यकीनन
सँभल रहे है इधर अगर हम उधर तो वो भी सँभल रही है

कभी तो फूटेगी कोई धारा मिलन का कोई तो बिन्दु होगा
के दरिया बनने की धुन में ‘संजय’ ये बर्फ अब तक पिघल रही है

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