तुम्हारी प्रतीक्षा
मैंने अपनी पूरी उम्र
कैद कर ली है
इन आंखों में
दिनों की गिनती
अर्थहीन लगती है अब
मैंने तो
बरस के बरस
इन आंखों के रास्ते
तुम्हारी प्रतीक्षा में
समर्पित कर दिए हैं
आशाओं का
तार-तार होना
अब
व्यथित नहीं करता मुझे
आदत-सी हो गई है
इन पथराई आंखों को
क्षितिज तक देखने की
और
तुम क्षितिज हो
इस सत्य का
आभास है मुझे
फिर भी न जाने क्यों
मैं अपनी सारी उम्र
आंखों के रास्ते
तुम्हारी प्रतीक्षा में
गुजार देना चाहता हूँ ।
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अशोक सोनी
-9406027423
भिलाई-छ.ग.।