तुम्हारी पुजारी प्रिय
तुम्हारी पुजारी प्रिय
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क्षितिज में यादें मेघा बनकर छा
जाने दो।
बरसा बनकर, बूंदों सी बरस जाने दो।।
मीठी मधुर यादें देने वाले,
पीड़ा को भूल नहीं सकते।
खुशियों में खुश होकर प्रिय!
तुम मुझको भूल नहीं सकते।।
हर -पल साथ दिया मैंने,
जीवन के पथ में।
प्रिय! मुझको भूल न जाना,
इस पथरीले पथ में।।
छोड़ कर मुझको कहां जाओगे,
इस जहान में प्रिय!
बंधे हुए हृदय -पाश में,
मुझ भक्तन को मंदिर में,
जगह दे दो प्रिय!
जोगन बन सुमिरन करूं, तेरा ही नाम।
प्रिय! मोहन -मोहन रटती हूं मैं,
हर-पल एक ही काम।।
मंदिर -मंदिर भटकूं में, लेकर हाथ में इकतारा।
अंखियां प्यासी दरश की, पथ निहारें
दिन सारा ।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,