तुम्हारी छवि…
तुम्हारी छवि…
मेरे समक्ष आयी तो लगा जैसे जीवन में,
किसी मनोहर प्रत्यूष का उदय हुआ है,
नैन इतने सुन्दर कि,
स्वंय को इनमें लीन कर लेने का मन करता है,
वर्षों से ह्रदय में छिपा हुआ प्रीत का राग, स्वर्णिम संगीत
आज बजने के लिये व्याकुल है,
कभी कभी रुक्मिणी का प्रेम ह्रदय पटल पर अंकित हो उठता है,
ऐसै में बस क्या कहूँ,
जी चाहता है कि तुम्हारे लवणत्व तथा कोमलता को,
बस निहारता ही रहूँ!!!
– उमर त्रिपाठी
+91 94574 78211