तुम्हारी चाहत !
उनको मिलने की चाहत थी,
चाहत, चाहत रह गयी बन कर।
निहारते थे दूर से ही उनको,
चली गयी किसी और की बनकर।
रह गयी दिल टूटने की आवाज भी
उनकी शहनाई की आवाज में दबकर।
अब तो बस में हूँ और मेरी तन्हाई है,
कैसे मैं समझाऊ इस दिल को रहबर।
लिखने का शौक पाल लिया है यारो,
गम गलत करता हूँ कागज पर लिखकर।
मुकेश गोयल ‘किलोईया’