तुम्हारी उँगलियों की छुअन को..
तुम्हारी उँगलियों की छुअन को, भूलना मुमकिन नहीं,
तुम्हारी ज़िद से, जद्दोजहद से, मुकरना मुमकिन नहीं,
तुम्हारे नयनों की गहराईयों को, समझना संभव नहीं,
तुम्हारी याद-ए-गुल-ओ-गुलज़ार बिखेरना संभव नहीं।
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हरेक हंसी पे तुम्हारे, महताब खिल आता है,
हरेक अश्क़ तुम्हारा, समंदर नज़र आता है,
हरेक शाम, तुम्हारे आगोश को तरसती है ,
हरेक तन्हा मौसम, सफ़र-ए-क़हर लगता है।
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तुम्हारे आंसुओं में अगन है शायद, मैं जल उठता हूँ,
तुम्हारी बातों में शीत है शायद, मैं संभल जाता हूँ,
तुम्हारी नज़रों में शिकवे हैं शायद, मैं पढ़ लेता हूँ
तुम्हारी यादों में बादल हैं शायद, मैं बरस लेता हूँ।
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शायद तुम श्रोता हो मेरी, मैं कहानी हूँ तुम्हारा,
शायद तुम उद्देश्य हो मेरा, मैं पथिक हूँ तुम्हारा,
शायद तुम अतीत हो मेरा, मैं आगत हूँ तुम्हारा,
शायद तुम भ्रम हो मेरा, मैं सुनिश्चित हूँ तुम्हारा।
-✍श्रीधर.