तुम्हारा सच
भले पुतवा दो दीवारें, हज़ारों रंग रोगन से,
ईंटें चीख के कहतीं, मकाँ का दर्द क्या-क्या है!
माना तुम छिपाने में बहुत माहिर भी हो लेकिन
ये ऑंखें बोल देती हैं, तुम्हारे दिल में क्या-क्या है!
तुम्हारा सच जहाँ भी है, मुझे मालूम है, क्या है!
तुम्हें ये भी नहीं मालूम, मुझे मालूम क्या-क्या है