तुम्हारा विश्वास न था
पत्तों में हुई सरसराहट
मगर कोई पास न था
तुम आओगी यहां
मुझे विश्वास न था…
राहों में देखे सुर्ख फूल बहुत से
तेरे अधरों के सुर्ख होने का आभास न था
जन्नत की सारी खुशियां तो थी
दो सितारों में, चांद की चांदनी का अहसास न था….
कहां से चलकर कहां आ गई
मुझे प्रेयसी का विश्वास न था
सटे होठ और बंधन कसते गए
’अंजुम’ सुबह हुई कैसे कुछ अहसास न था…
नाम-मनमोहन लाल गुप्ता
मोबाइल-9927140483