तुम्हारा मेरा रिश्ता….
तुम्हारा मेरा रिश्ता….
ढलती हुई रात और सुबह के बीच सा कुछ।
जैसे खुशी से निकले आँसू सा,
वो जैसे पतझड़ के बाद पेड़ो से निकलतें हैं कुछ कोमल पत्ते,
वहीं जिनका रंग हरे-लाल के बीच में कुछ होता हैं,
जैसे बारिश से पहलें की मदहोशी,
और उसके बाद की सोंधी खुशबू सा,
नंगे पैर ठंडी रेत पे टहलने पे जो गुदगुदी सी होती हैं,
वैसा ही कुछ….
तुम्हारा मेरा रिश्ता,चढ़ते नशें के अहसास सा,
जैसे दो बच्चे आपस में ठिठोली करते हैं न,
बिलकुल वैसा ही,
तुम्हारा मेरा रिश्ता,जिसमें जरूरत नहीं शब्दों की,
जिसमें भावनाएं बस एक दुसरे को नज़रों नज़रों में ही बयां हो जाएं….
फिर भी मैं तुम्हारे लिए एक रोज़ लिखूँगा जरूर,
जिसें पढ़कर तुम मुस्कुराओगी , खिलखिलाओगी
और शायद आँखें भी भिगाओगी….