तुम्हारा प्रेम
कभी अधरों की मुस्कान तो कभी नैनो का नीर हो तुम ।
कभी जलती धूप तो कभी शीतल समीर हो तुम ।
यह तुम्हारा प्रेम ही तो है ।
भिन्न-भिन्न बदलता स्वरूप ही तो है ।।
हृदय से हृदय के बीच खिंची लोक लाज की लकीर हो तुम ।
कभी दुआओं अरदास में मांगी तकदीर हो तुम ।
यह तुम्हारा प्रेम ही तो है ।
भिन्न-भिन्न बदलता स्वरूप ही तो है ।।
कभी मेरे शब्दों को काटते शब्दभेदी तीर हो तुम ।
कभी बिन अभिव्यक्ति की मौन तस्वीर हो तुम ।
सारा जहां मिल जाता जब कहते मैं रांझा और हीर हो तुम।
जीवन में मिली मुझे अप्रत्याशित जागीर हो तुम ।
यह तुम्हारा प्रेम ही तो है ।
भिन्न-भिन्न बदलता स्वरूप ही तो ।।