तुम्हारा प्रेम
कभी नहीं चाहा था
तुम्हें पकड़ना या कैद करना
मैं चाहती थी ..
कण-कण में
समाहित हो जाओ तुम..
गुनगुनाओ..
जल की निश्छल बूॅंदों के साथ
लिपट जाओ मेरे हर लम्हें से
चंदन की सुगंध की तरह..
तुम्हारा प्रेम अभिसिंचित कर जाता है
मेरे मन की हर बंजर सोच को
और दे जाता है
एक नया अर्थ
अनुभवों की चिटकी मृदा को..
रश्मि लहर
लखनऊ