“तुम्हारा परिचय “
तुम भीड़ भरी गलियों से गुजर जाते हो
सिसकती जिंदगियों से रूबरू होते हो
दर्द की करूण पुकार सुन परेशान होते हो
गंदी नजर आती नंगी असलियत तुमको
दयालु बहुत हो,कु६ न कुछ तो देना है उनको
एक तिरस्कार भाव दे देते हो उनको
दर्द,उदासी,बेबसी,भूख की तड़प
कहाँ नजर आती है तुम्हें,ढ़ोगी समझ हँसते हो और जाड़े की रात,सर्द झोंकों से दूर
लिहाफ ओढ़े दर्द भरी कविता इनपर लिखते हो
उठती है बहुत आस भरी नजरे इनकी तुमपर
आशवासनों की अधजली रोटियाँ बिखेर देते हो
दर्द की गहराईयों में डूब कर जीना कहाँ सीख पाते हो
तुम तो नासूर पर खुले आम नक्काशी किया करते हो