तुम्हारा जिक्र
ऐसा लगा किसी ने हमको, अंतर्मन में पुकारा है,
मत कहना इन अल्फाजों में, आता जिक्र तुम्हारा है।
वैसे तो तुम अपने दिल की, सब बातें कहते थे हमसे,
अब तो लेकिन बीत गया सब, क्या बातें क्या इशारा है।
तुमसे सांसे चलती थीं और, तुमसे ही थम जाती थीं,
तब जीवन का नाम दूसरा, लगता था नाम तुम्हारा है।
तब मकान को घर करने के, कितने सपने देखे थे,
तेरा हर सपना लगता था, जैसे स्वप्न हमारा है।
सील गए हैं सारे रिश्ते, सील गईं सब यादें हैं,
सीली-सीली यादों में फिर भी, बाकी कुछ तो करारा है।
तुमसे रिश्ते निभा ना पाए, डूब गई दिल की नैया,
प्रेम भँवर में फंसने वाले, पाते कहां किनारा है।
उल्लासों के मौसम जाने, कब पतझड़ में बीत गए,
बीत गए सावन के मौसम, न आते दिखे दोबारा है।
ऐसा लगा किसी ने हमको, अंतर्मन में पुकारा है,
मत कहना इन अल्फाजों में, आता जिक्र तुम्हारा है।
(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”