तुम्हारा आना
तुम्हारा आना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
तपते मरुस्थल में वर्षा का आ जाना
मरुस्थल की प्रतीक्षा को अंततः एक विराम
देता सा स्वरूप तुम्हारा
लगता है मरुस्थल में भी अब , फूल खिलेंगे
प्यासी वसुधा के उर पर
नव कोंपलें इठलाएँगी।
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
घने मेघों का छंट जाना
और नव सूर्य किरणों का
सारी प्रकृति पर छा जाना
धूप की चादर ओढ़ प्रकृति
शर्माती, इठलाती, श्रृंगारित दुल्हन सी लगती
तुम्हारा हौले से उसके कान में मधुर राग छेड़ जाना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
अमावस बाद पूनम का आ जाना
पूनम की चाँदनी में
सारी कालिमा का मिट जाना
तुम्हारा पूनम की सरिता में
जीवन की कटुता बहा ले जाना
और जीवन के सत्यों को प्रकाशित कर
जीवन को उज्जवल रूप प्रदान कर जाना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
सागर का रेत को छू जाना
रेत की तपती चुभन को शीतल कर
अपने में समाहित कर ले जाना
प्रकृति को प्रकृति में ही विलीन कर जाना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
अनंत युगों से धधकते ज्वालामुखी से लावा का बह जाना
धरती को घुटन और दर्द से मुक्त कर जाना
सारी भयावह स्मृतियों, जीवन के रोष और कटुता का
लावा के विस्फोट में उड़ जाना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
फूल पर ओंस कणों का आ जाना
फूल के एकाकीपन को कम करते हुए
सारी रात उसके साथ बतियाना
सूर्य निकलते ही उसे अकेला छोड़
फूल को फिर एक और इंतिज़ार दे जाना
तुम्हारा आना यूँ है जैसे
तपते मरुस्थल में वर्षा का आ जाना…..!
©️कंचन अद्वैता