तुम्हारा अभिनन्दन है
मैं तुमको पाने भाग रहा, जीवन की आपाधापी में।।
तुम अब आई हो प्रिये, तुम्हारा अभिनंदन है।।
जाने कितनी व्यथा समेटे,
जंगल सहरा छान दिए।
जो नफरत के लायक ना थे,
उनको भी सम्मान दिए।।
जिसको मैंने कालिख़ समझा, वह तो माथे का चंदन है।।
तुम अब आई हो प्रिये, तुम्हारा अभिनंदन है।
संत्रासों में जीना भी तो,
एक नई अनुभूति देता।
श्रम का सूरज ही जीवन में,
गहन अंधेरे को हर लेता।।
याद तुम्हारी जैसे प्रियसी। होता ईश्वर का वंदन है।।
तुम अब आई हो प्रिये। तुम्हारा अभिनंदन है।।
हृदय पटल पर रह-रहकर,
दस्तक देती याद तुम्हारी।
तुमसे जीवन में खुशियां हैं,
तुम ही मेरी दुनिया सारी।।
मेरी हर एक धड़कन में ही, होता तेरा स्पंदन है।।
तुम अब आई हो प्रिये, तुम्हारा अभिनंदन है।।
विजय “बेशर्म”
9424750038