तुमबिन
तुम बिन जाऊं अमराई तो,
ये कोयल की कूक न भाए l
तुम बिन बैठूं पनघट पर तो,
अल्हड़ पुरवा जिया जलाए l
तुम बिन जाऊं फुलवारी तो,
दिव्य पुष्प सौरभ न लुटाए l
तुम बिन मेरे मन मधुबन में,
स्वागत को मधुमास न आए l
तुम बिन भटके ये हिरनी मन,
नित प्रेम विरह में अकुलाए l
तुम बिन पाकर अभीमोद भी,
ये पल्लव अधर न मुस्काए l
तुम बिन नैन-नक्श रूठा है,
अब कौन इसे हर्षाने आए l
तुम बिन अब मेरे हमराही,
बरखा की बौछार न भाए l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल