तुमने छीना है माँ को
हे शिव | तुमने छीना है मुझसे मेरी माँ को ,
स्वयं तो तुम रहे सदा ही अजन्मे …
तुमको हे ईश क्यों माँ का ममत्व समझ न आया
क्यों तुम माँ का अस्तित्व बना के
माँ का ही अस्तित्व मिटाते हो
क्यों समझ न सके उस बालक की टीस ?
कैसे तुमने खुद को पत्थर कर डाला ?
कैसे तुमने उस जाती अर्थी को …
पीछे जाते बच्चों का रुदन सह डाला …
नहीं नहीं देव् माँ के अस्तित्व को अब न मिटा
अस्तित्व रहे देवत्व का ..माँ का अस्तित्व ज़रूरी है
अब न ये प्रलय मचाना शम्भू
वरना हर कोमल मन चीख उठेगा
हे शिव | तुमने छीना है मुझसे मेरी माँ को |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’