तुमने क्या पाया? ऐ कोरोना!
तुमने क्या पाया? ऐ कोरोना!
पर हाँ,हमने बहुत कुछ खोया ऐ कोरोना!
खो दिया हमने अपनों को,
अपने भविष्य को और
अपने बहुत सारे लोगों को।
खो गई हमारी आशायेँ, सारी अभिलाषाएँ,
पस्त हो गये इरादे,गुम हो गये बहुत से वादे,
जो जहाँ था वो वहीं जड़ हो के रह गया,
बिन जेल के हर कोई कैदी हो के रह गया।
कहीं लोग पास आने से कतराते थे और ,
कहीं,अनजानों ने आकर दामन थाम लिया,
डर ने जीवन में ऐसा ड़ेरा जमाया की
अपनों ने अपनों को मुत्युशैया पर भी त्याग दिया।
सैंकड़ो हाथों ने आँसू पोंछे ,
अनगिनत लोगों ने भूखों को भोजन कराया,
अपरचितों ने कई लाशों को दफ़नाया,लोगों ने,
कई दुत्कारी हुई चिताऔं को अंजाम तक पहुँचाया।
अस्त-व्यस्त हो गई जिंदगीं जो एक ढ़र्रे पर चल रही थी,
कोई गिर कर संभला, कोई गिरकर उठ ही नही पाया,
बताओं, तुमने क्या पाया? ऐ कोरोना!
मगर हाँ,हमने बहुत कुछ खोया ऐ कोरोना।