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19 Jul 2017 · 1 min read

तुमने कहा था

एक
शाम
सागर के वीरान किनारे पर
तुमने कहा था-
मेरे प्यार की गहराइयों के मुकाबिल
सागर की अनन्त गहराईयाऑं क्या?
मेरे प्यार के बन्धन के सामने
जन्म-मरण का बन्धन क्या?
मेरे प्यार के अमरत्व आगे
सूरज-चांद की बिसात क्या?
सुनकर कितना खुश हुआ था मैं
क्योंकि नहीं समझ पाया था तब
जो अब समझा
कितना उथला
कितना कमज़ोर
और कितना क्षणिक था
तेरा प्यार।
पर आज मैं खुश हूँ
क्योंकि
मेरा कोई प्यार नहीं है।
(ईश्वर जैन, उदयपुर)

Language: Hindi
1 Like · 470 Views
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