तुमने कभी लिखे तो नहीं
तुमने कभी लिखे तो नहीं
पर उन खतों को पढ़ लेता हूं…
जो तुमने कभी देखे नहीं
ख्वाब हसीन गढ़ लेता हूं…
तुम जो तुम हो, क्या पता है तुमको
लिखती हो क्या उसने पढ़ा है तुमको
मुझे शिकायत नहीं है ऐसा क्यों है
बेरुखी को आदतन मैं सह लेता हूं…
तुमने कभी लिखे तो नहीं
पर उन खतों को पढ़ लेता हूं…
तुम तो तुम हो, सब चाहेंगे ही तुम्हें
पाक दुआ हो तो सब मांगेंगे ही तुम्हे
मैं तो नाव हूं भटकी हुई किनारे से
सुनाई ना दे ऐसे अक्सर कह देता हूं..
तुमने कभी लिखे तो नहीं
पर उन खतों को पढ़ लेता हूं…
तुम तो तुम हो, तुम उजाला हो कहीं
बस जले हो खुद को संभाला है नहीं
किसी की तकदीर हो तस्वीर हो तुम
मैं तो अंधेरे में अश्रु सा बह देता हूं…
तुमने कभी लिखे तो नहीं
पर उन खतों को पढ़ लेता हूं…
तुम तो तुम हो, तुम मुझे मिलते कैसे
गंगू तेली हूं मै, मिलते तो निभते कैसे
कालिदास नहीं हूं, पर ज़बाब है सवालों का
विद्ध्योत्मा हो बिना उत्तर दिए चल देता हूं…
तुमने कभी लिखे तो नहीं
पर उन खतों को पढ़ ही लेता हूं…
जो तुमने कभी देखे नहीं
ख्वाब हसीन गढ़ लेता हूं…
भारतेन्द्र शर्मा