तुझ बिन आराम नही होता!
जब दर्द शगूफा लगता है, जब दवा से काम नही होता।
तब एक सहारा जीने का, रब शुक्राना जाम वही होता।।
वह दौर अलग था जब मेरे, आगे पीछे थे कई नाम बड़े।
अब भी अकेलेपन में साथी, मैं तन्हा बदनाम नही होता।।
कुछ लोग छोड़ गए मज़बूरी में, कुछ लोग आदतन छोड़े।
तुँ न कभी मजबूर हुआ, खत्म तेरा एहतराम नही होता।।
बद से अच्छा बदनाम सही, कम से कम मुझे तसल्ली है।
अपने खुशी की तलाश में मुझपे, कोई इल्ज़ाम नहि होता।।
है दर्द मुझे भी, है दर्द तुझे भी, आ मेरा हमदर्द तू बन।
अपनो को यूँ गले लगाना, जन्नत में हराम नही होता।।
मेरा ज़ख्म न कहीं नासूर बने, इससे पहले बन जा दवा।
बोतल से आ खाली सीने में, तुझ बिन आराम नही होता।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०६/०७/२०२१)