तुझे शायद पता ही नहीं
तुझे शायद पता ही नहीं
किस तरह जीता हूँ तुझे मैं
सुबह शाम दिन रात हर पल
तेरी यादों के साये में रहता हूँ मैं
आँखें बंद करता हूँ तो
सुनता हूँ खिलखिलाहट तेरी
तेरी मुस्कुराहटों से रोशन घर करता हूँ मैं
जो तेरी आँखों में नमी देखता हूँ तो
पूरी दुनिया से लड़ने को तैयार रहता हूँ मैं
चाहता हूँ तहेदिल से तुझे
तुझे शायद ख़बर ही नहीं
किस तरह नादान दिल की हसरतों को
अपने मन में कहीं छुपा कर रखता हूँ मैं
तुझे शायद पता ही नहीं
किस तरह जीता हूँ तुझे मैं
–प्रतीक