तुझे पाने की तलाश में…!
तुझे पाने की तलाश में, दर–दर भटक रहा हूं
मिट्टी में हुआ पैदा, मिट्टी में मिल रहा हूं
तलवों में जो छाले पड़ते, जलती सी इस रेत में
राहत पाने को जा बैठे, यादों के उस खेत में
हरी–भरी सुधियों की फसलें,राहत देते पीले फूल
परछाईं तेरी ले–लेकर, आंखों में जो भर रहा हूं
तुझे पाने की…………
यादों की जलती हैं अलाव, सर्द हवा में आंच उठाव
बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे कांटों का फैलाव
एक परिंदा सा मैं बनकर, बादलों संग उड़ रहा हूं
ऋतुएं मेरे पीछे–पीछे, ऋतुओं से मैं भाग रहा हूं
तुझे पाने की…………..
पर्वत जो ये मौन खड़ा है, नदिया कल–कल बहती है
लाखों–हजारों देख के मंजर, सागर में जा मिलती है
बूंद–बूंद का मैं हूं प्यासा, पूरी न होती जो अभिलाषा
मन की इच्छाओं ने जकड़ा, मन ही मन मैं तड़प रहा हूं
तुझे पाने की………….
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह
*ये मेरी स्वरचित रचना है
* ©सर्वाधिकार सुरक्षित