!! तुझे पाने की चाहत में !!
तुझ को पाने की चाहत में
छोड़ आया सब कुछ अपना
जिस को मैं कहता था कभी
कि, ये छूटेगा नहीं !!
बड़े भ्रम में पाल रहा था
अपने सपनो को मैं
कभी इधर और कभी
उधर करवट बदल बदल कर !!
किस राह पर आज निकल
आया हूँ, खुद को नहीं पता
अब तेरी चाहत में चाहे हो
ही क्यूं न जाऊं, मैं फनाह !!
उस कस्तूरी की सी महक
ने खींच लिया मुझ को
अब न मैं खुद को रोक पाया
न अपने बढ़ते क़दमों को !!
तेरी ही बस अब चाहत है
मन में तेरा ही सरूर है
ओ मेरे राम आ जा सामने
अगर हुआ कुछ कसूर है !!
न दिल में चाहत है बाकी
कि क़दमों को ले जाऊं लोटा के
“करूणाकर” की विनती सुनो
दे दो जगह अपने चरणों में !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ