तुझे क्या कहूँ
अपनों से गिला करूँ तो गैरों से क्या कहूँ।
वार जब अपने ही करें तो गैरों से क्या कहूँ।
बहुत आशनाई थी तुझे हमसे भरोसा जताया
लेकर मन के भेद प्यार से कहीं ओर ही बताया
जोड़ा रिश्ता मन से बता कर, तुझे क्या कहूँ ।
झूठ बोलना कभी आया नहीं, खुदा जानता है।
धोखा खाकर भी ये धोखा देना नहीं जानता है ।
गले में डाल बाँहें कुरेदा जख्म,तुझे क्या कहूँ।
दिया मान सम्मान पूरा बिना स्वार्थ के ही सदा।
तोड़ने को घर मेरा बने क्यों तुम कमजोर सिरा
नज़रों से गिरे ,दिल से,बहे अश्क तुझे क्या कहूँ।
पाखी