#तुझसे बिछुड़ क्यों आया
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★ #तुझसे बिछुड़ क्यों आया ★
नीलकंठ कैलाशपति
हे दीनों के नाथ !
शीश विराजे चंद्रमा
वामांगे सजती मात
नन्दीश्वर कृपा करो
मेरी बिगड़ी तुमरे हाथ
नन्दीश्वर कृपा करो !
दिवस के पीछे रैना चलती
रैना पीछे दिवस बावरा
उदयाचल से अस्ताचल तक
नित खेल देखती यह धरा
मेरे जीवन में हे प्रभु
इतनी लम्बी रात
नन्दीश्वर कृपा करो !
सांझ को पंछी वापस लौटें
घर अपने को आ रहे
सुबह के बिछुड़े पेड़ों के संग
गीत मिलन के गा रहे
मैं बिछुड़ा ऐसा अपनों से
ज्यों शाखा से पात
नन्दीश्वर कृपा करो !
बहती गाती नदिया सजनी
ज्यों पीहर से आ रही
न रुकती न टिकती पल-छिन
पी के अंक समा रही
मेरे मन का मीत न मिलता
खोजत हूं दिन-रात
नन्दीश्वर कृपा करो !
संग मेरे आकाश भी रोया
रोया पूरी रात
मन मेरा भी भीज गया
भीजे सब पेड़ों के पात
कैसा गीत मैं कैसे गाऊं
उठ जाएं तेरे हाथ
नन्दीश्वर कृपा करो !
न मैं चाहूं महल अटारी
न धन-दौलत न माया
मन में पीर बसी है मेरे
तुझसे बिछुड़ क्यों आया
अब जीना मोहे नाहीं सुहाए
मोहे राखो निज चरणों के पास
नन्दीश्वर कृपा करो !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२