तीसरी बेटी – परिवार का अभिमान
तीन बहनों में सबसे छोटी, जितनी लाडली उतनी ही खोटी,
सपने लेती थी बड़े बड़े, बात मनवाती सबसे खड़े खड़े।
पैदा होने पर सबने किया सवाल, तीसरी भी लड़की है, क्या करेगी कमाल?
छोटी थी तो इतनी प्यारी कि जीता सबका दिल,
दादा जी का कहना था – “सोना, तू तो सोना ही है ना”
बड़ी हुई तो, खेल कूद, पढाई और प्रतियोगितायों में बनाई पहचान।
सपना देखा तो डॉक्टर बनने का, पूरा करने के लिए लगा दी जान।
बहुत उतार चढ़ाव के साथ, पहुचीं पढने विदेश,
किया संघर्ष खूब, ध्येय पाने के लिए नहीं छोड़ा कुछ शेष।
बचपने से समझदारी की यात्रा भी की वहीं पूरी,
आकर पहली कोशिश में, सफल हुई उस परीक्षा में, जिसको लग जाते हैं सालों साल।
बन डॉक्टर, कर निःस्वार्थ सेवा कोरोना मरीजों की,
दे दिया सबको जबाव, तीसरी लड़की भी कर सकती है कमाल।
घर, गांव, स्कूल, परिवार, सबका सिर किया गर्व से ऊँचा,
बन गई परिवार की पहली डॉक्टर, किया अपनी माँ का सपना साकार।
एक सबक सब रखो याद,
कितनी भी रुकावटें आए, रखो हिम्मत, करो कोशिश, ना मानो कभी हार,
तभी पाओगे अपना लक्ष्य और जीतोगे हर लड़ाई,
आसान नहीं हैं जिंदगी के ये रास्ते, हिम्मत से ही पार कर पाओगे हर खाई।
आज है मुझे और पापा को है गर्व, कि हम माँ – पापा हैं तीन बेटियों के,
बेटी होना कोई अपमान नहीं, है सम्मान की ये बात,
दुआ है, तुम जियो सालों साल और ऊपर वाला रखे तुम्हारा ख्याल।
माँ – पापा और बहनें, हैं हमेशा तुम्हारे साथ,
हर रुकावट होगी आसानी से पार।
हम पांच हैं साथ साथ, जीतेंगे और होंगे कामयाब,
भगवान और परिवार का खूब मिलेगा आशीर्वाद।