तीरगी से निबाह करते रहे
ग़ज़ल
तीरगी से निबाह करते रहे
अपनी रातें सियाह करते रहे
रोज़ दीवार वो उठाते नयी
और हम रोज़ राह करते रहे
बेवफ़ा से वफ़ा की आस लिए
ज़िंदगी हम तबाह करते रहे।
सींचा उनकी अना का हमने दरख़्त
प्यार जो बे-पनाह करते रहे
ठोकरें बार बार हमको मिली
ख़ुद को क्यों संग-ए-राह करते रहे
दर्द-ए-दिल जब बयां किया है ‘अनीस’
वो फ़क़त वाह वाह करते रहे
– अनीस शाह ‘अनीस ‘